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अरण्यकाण्ड दोहा 39

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चौपाई :गुनातीत सचराचर स्वामी। राम उमा सब अंतरजामी॥कामिन्ह कै दीनता देखाई। धीरन्ह कें मन बिरति दृढ़ाई॥1॥ भावार्थ:- (शिवजी कहते हैं-) हे पार्वती! श्री रामचंद्रजी गुणातीत (तीनों गुणों से परे), चराचर जगत्‌ के स्वामी और सबके अंतर की जा

अरण्यकाण्ड दोहा 38

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चौपाई :बिटप बिसाल लता अरुझानी। बिबिध बितान दिए जनु तानी॥कदलि ताल बर धुजा पताका। देखि न मोह धीर मन जाका॥1॥ भावार्थ:- विशाल वृक्षों में लताएँ उलझी हुई ऐसी मालूम होती हैं मानो नाना प्रकार के तंबू तान दिए गए हैं। केला और ताड़ सुंदर ध्

अरण्यकाण्ड दोहा 37

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चौपाई :चले राम त्यागा बन सोऊ। अतुलित बल नर केहरि दोऊ॥बिरही इव प्रभु करत बिषादा। कहत कथा अनेक संबादा॥1॥ भावार्थ:- श्री रामचंद्रजी ने उस वन को भी छोड़ दिया और वे आगे चले। दोनों भाई अतुलनीय बलवान्‌ और मनुष्यों में सिंह के समान हैं। प

अरण्यकाण्ड दोहा 36

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चौपाई :मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा॥1॥ भावार्थ:- मेरे (राम) मंत्र का जाप और मुझमें दृढ़ विश्वास- यह पाँचवीं भक्ति है, जो वेदों में प्रसिद्ध है। छठी भक्ति है इं

अरण्यकाण्ड दोहा 35

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चौपाई :पानि जोरि आगें भइ ठाढ़ी। प्रभुहि बिलोकि प्रीति अति बाढ़ी॥केहि बिधि अस्तुति करौं तुम्हारी। अधम जाति मैं जड़मति भारी॥1॥ भावार्थ:- फिर वे हाथ जोड़कर आगे खड़ी हो गईं। प्रभु को देखकर उनका प्रेम अत्यंत बढ़ गया। (उन्होंने कहा-) म

अरण्यकाण्ड दोहा 34

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चौपाई :सापत ताड़त परुष कहंता। बिप्र पूज्य अस गावहिं संता॥पूजिअ बिप्र सील गुन हीना। सूद्र न गुन गन ग्यान प्रबीना॥1॥ भावार्थ:- शाप देता हुआ, मारता हुआ और कठोर वचन कहता हुआ भी ब्राह्मण पूजनीय है, ऐसा संत कहते हैं। शील और गुण से हीन भी 

अरण्यकाण्ड दोहा 33

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चौपाई :कोमल चित अति दीनदयाला। कारन बिनु रघुनाथ कृपाला॥गीध अधम खग आमिष भोगी। गति दीन्ही जो जाचत जोगी॥1॥ भावार्थ:- श्री रघुनाथजी अत्यंत कोमल चित्त वाले, दीनदयालु और बिना ही करण कृपालु हैं। गीध (पक्षियों में भी) अधम पक्षी और मांसाहा

अरण्यकाण्ड दोहा 32

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चौपाई :गीध देह तजि धरि हरि रूपा। भूषन बहु पट पीत अनूपा॥स्याम गात बिसाल भुज चारी। अस्तुति करत नयन भरि बारी॥1॥ भावार्थ:- जटायु ने गीध की देह त्यागकर हरि का रूप धारण किया और बहुत से अनुपम (दिव्य) आभूषण और (दिव्य) पीताम्बर पहन लिए। श्याम