अरण्यकाण्ड दोहा 15
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चौपाई :थोरेहि महँ सब कहउँ बुझाई। सुनहु तात मति मन चित लाई॥मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया॥1॥ भावार्थ:-(श्री रामजी ने कहा-) हे तात! मैं थोड़े ही में सब समझाकर कहे देता हूँ। तुम मन, चित्त और बुद्धि लगाकर सुनो! मैं और