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सुंदरकाण्ड दोहा 01

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चौपाई :जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई॥1॥भावार्थ:-जाम्बवान्‌ के सुंदर वचन सुनकर हनुमान्‌जी के हृदय को बहुत ही भाए। (वे बोले-) हे भाई! तुम लोग दुःख सहकर, कन्द-मूल-फल ख

सुंदरकांड की शुरुआत - श्लोक

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श्रीगणेशायनमःश्रीजानकीवल्लभो विजयतेश्रीरामचरितमानसपञ्चम सोपानश्री सुन्दर काण्डश्लोक :  शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदंब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्‌।रामाख्यं जगदीश्वरं सुरग