सुंदरकाण्ड दोहा 01
Filed under:
Sunderkand
चौपाई :जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई॥1॥भावार्थ:-जाम्बवान् के सुंदर वचन सुनकर हनुमान्जी के हृदय को बहुत ही भाए। (वे बोले-) हे भाई! तुम लोग दुःख सहकर, कन्द-मूल-फल ख