अरण्यकाण्ड दोहा 31
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चौपाई :तब कह गीध बचन धरि धीरा। सुनहु राम भंजन भव भीरा॥नाथ दसानन यह गति कीन्ही। तेहिं खल जनकसुता हरि लीन्ही॥1॥ भावार्थ:- तब धीरज धरकर गीध ने यह वचन कहा- हे भव (जन्म-मृत्यु) के भय का नाश करने वाले श्री रामजी! सुनिए। हे नाथ! रावण ने मेरी य