अयोध्याकाण्ड दोहा 302
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Ayodhyakand
चौपाई :कपट कुचालि सीवँ सुरराजू। पर अकाज प्रिय आपन काजू॥काक समान पाकरिपु रीती। छली मलीन कतहुँ न प्रतीती॥1॥ भावार्थ:- देवराज इन्द्र कपट और कुचाल की सीमा है। उसे पराई हानि और अपना लाभ ही प्रिय है। इन्द्र की रीति कौए के समान है। वह छल