अयोध्याकाण्ड दोहा 293
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चौपाई :सुनि तन पुलकि नयन भरि बारी। बोले भरतु धीर धरि भारी॥प्रभु प्रिय पूज्य पिता सम आपू। कुलगुरु सम हित माय न बापू॥1॥ भावार्थ:- भरतजी यह सुनकर पुलकित शरीर हो नेत्रों में जल भरकर बड़ा भारी धीरज धरकर बोले- हे प्रभो! आप हमारे पिता के सम