लंका काण्ड दोहा 115
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छंदमामभिरक्षय रघुकुल नायक। धृत बर चाप रुचिर कर सायक।।मोह महा घन पटल प्रभंजन। संसय बिपिन अनल सुर रंजन।।1।।भावार्थ:-हे रघुकुल के स्वामी! सुंदर हाथों में श्रेष्ठ धनुष और सुंदर बाण धारण किए हुए आप मेरी रक्षा कीजिए। आप महामोहरूपी मेघ