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लंका काण्ड दोहा 81

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चौपाई :सुर ब्रह्मादि सिद्ध मुनि नाना। देखत रन नभ चढ़े बिमाना॥हमहू उमा रहे तेहिं संगा। देखत राम चरित रन रंगा॥1॥ भावार्थ:- ब्रह्मा आदि देवता और अनेकों सिद्ध तथा मुनि विमानों पर चढ़े हुए आकाश से युद्ध देख रहे हैं। (शिवजी कहते हैं-) हे

लंका काण्ड दोहा 80

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चौपाई :रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा॥1॥ भावार्थ:- रावण को रथ पर और श्री रघुवीर को बिना रथ के देखकर विभीषण अधीर हो गए। प्रेम अधिक होने से उनके मन में सन्देह हो गया (क

लंका काण्ड दोहा 79

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चौपाई :चलेउ निसाचर कटकु अपारा। चतुरंगिनी अनी बहु धारा॥बिबिधि भाँति बाहन रथ जाना। बिपुल बरन पताक ध्वज नाना॥1॥ भावार्थ:- राक्षसों की अपार सेना चली। चतुरंगिणी सेना की बहुत सी Uटुकडि़याँ हैं। अनेकों प्रकार के वाहन, रथ और सवारियाँ 

लंका काण्ड दोहा 78

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चौपाई :तिन्हहि ग्यान उपदेसा रावन। आपुन मंद कथा सुभ पावन॥पर उपदेस कुसल बहुतेरे। जे आचरहिं ते नर न घनेरे॥1॥ भावार्थ:- रावण ने उनको ज्ञान का उपदेश किया। वह स्वयं तो नीच है, पर उसकी कथा (बातें) शुभ और पवित्र हैं। दूसरों को उपदेश देने 

लंका काण्ड दोहा 77

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चौपाई :बिनु प्रयास हनुमान उठायो। लंका द्वार राखि पुनि आयो॥तासु मरन सुनि सुर गंधर्बा। चढ़ि बिमान आए नभ सर्बा॥1॥ भावार्थ:- हनुमान्‌जी ने उसको बिना ही परिश्रम के उठा लिया और लंका के दरवाजे पर रखकर वे लौट आए। उसका मरना सुनकर देवता 

लंका काण्ड दोहा 76

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चौपाई :जाइ कपिन्ह सो देखा बैसा। आहुति देत रुधिर अरु भैंसा॥कीन्ह कपिन्ह सब जग्य बिधंसा। जब न उठइ तब करहिं प्रसंसा॥1॥ भावार्थ:- वानरों ने जाकर देखा कि वह बैठा हुआ खून और भैंसे की आहुति दे रहा है। वानरों ने सब यज्ञ विध्वंस कर दिया। 

लंका काण्ड दोहा 75

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चौपाई :मेघनाद कै मुरछा जागी। पितहि बिलोकि लाज अति लागी॥तुरत गयउ गिरिबर कंदरा। करौं अजय मख अस मन धरा॥1॥ भावार्थ:- मेघनाद की मूर्च्छा छूटी, (तब) पिता को देखकर उसे बड़ी शर्म लगी। मैं अजय (अजेय होने को) यज्ञ करूँ, ऐसा मन में निश्चय करके

लंका काण्ड दोहा 74

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चौपाई :चरित राम के सगुन भवानी। तर्कि न जाहिं बुद्धि बल बानी॥अस बिचारि जे तग्य बिरागी। रामहि भजहिं तर्क सब त्यागी॥1॥ भावार्थ:- हे भवानी! श्री रामजी की इस सगुण लीलाओं के विषय में बुद्धि और वाणी के बल से तर्क (निर्णय) नहीं किया जा सकता