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उत्तर काण्ड दोहा 03

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चौपाई :हरषि भरत कोसलपुर आए। समाचार सब गुरहि सुनाए॥पुनि मंदिर महँ बात जनाई। आवत नगर कुसल रघुराई॥1॥ भावार्थ:- इधर भरतजी भी हर्षित होकर अयोध्यापुरी में आए और उन्होंने गुरुजी को सब समाचार सुनाया! फिर राजमहल में खबर जनाई कि श्री रघुन

उत्तर काण्ड दोहा 02

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चौपाई :देखत हनूमान अति हरषेउ। पुलक गात लोचन जल बरषेउ॥मन महँ बहुत भाँति सुख मानी। बोलेउ श्रवन सुधा सम बानी॥1॥भावार्थ:- उन्हें देखते ही हनुमान्‌जी अत्यंत हर्षित हुए। उनका शरीर पुलकित हो गया, नेत्रों से (प्रेमाश्रुओं का) जल बरसने लगा

उत्तर काण्ड दोहा 01

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चौपाई :रहेउ एक दिन अवधि अधारा। समुझत मन दुख भयउ अपारा॥कारन कवन नाथ नहिं आयउ। जानि कुटिल किधौं मोहि बिसरायउ॥1॥भावार्थ:- प्राणों की आधार रूप अवधि का एक ही दिन शेष रह गया। यह सोचते ही भरतजी के मन में अपार दुःख हुआ। क्या कारण हुआ कि नाथ न

उत्तरकांड शुरुआत श्लोक

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श्रीगणेशायनमःश्रीजानकीवल्लभो विजयतेश्रीरामचरितमानससप्तम सोपानश्री उत्तरकाण्डश्लोक :केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नंशोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम्‌।पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्ध

लंका काण्ड दोहा 121

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चौपाई :प्रभु हनुमंतहि कहा बुझाई। धरि बटु रूप अवधपुर जाई॥भरतहि कुसल हमारि सुनाएहु। समाचार लै तुम्ह चलि आएहु॥1॥भावार्थ:-तदनन्तर प्रभु ने हनुमान्‌जी को समझाकर कहा- तुम ब्रह्मचारी का रूप धरकर अवधपुरी को जाओ। भरत को हमारी कुशल सुनान

लंका काण्ड दोहा 120

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चौपाई :तुरत बिमान तहाँ चलि आवा। दंडक बन जहँ परम सुहावा॥कुंभजादि मुनिनायक नाना। गए रामु सब कें अस्थाना॥1॥भावार्थ:-विमान शीघ्र ही वहाँ चला आया, जहाँ परम सुंदर दण्डकवन था और अगस्त्य आदि बहुत से मुनिराज रहते थे। श्री रामजी इन सबके स्थ

लंका काण्ड दोहा 119

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चौपाई :अतिसय प्रीति देखि रघुराई। लीन्हे सकल बिमान चढ़ाई॥मन महुँ बिप्र चरन सिरु नायो। उत्तर दिसिहि बिमान चलायो॥1॥भावार्थ:-श्री रघुनाथजी ने उनका अतिशय प्रेम देखकर सबको विमान पर चढ़ा लिया। तदनन्तर मन ही मन विप्रचरणों में सिर नवाक

लंका काण्ड दोहा 118

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चौपाई :भालु कपिन्ह पट भूषन पाए। पहिरि पहिरि रघुपति पहिं आए॥नाना जिनस देखि सब कीसा। पुनि पुनि हँसत कोसलाधीसा॥1॥भावार्थ:-भालुओं और वानरों ने कपड़े-गहने पाए और उन्हें पहन-पहनकर वे श्री रघुनाथजी के पास आए। अनेकों जातियों के वानरों क