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उत्तर काण्ड दोहा 01

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चौपाई :रहेउ एक दिन अवधि अधारा। समुझत मन दुख भयउ अपारा॥कारन कवन नाथ नहिं आयउ। जानि कुटिल किधौं मोहि बिसरायउ॥1॥भावार्थ:- प्राणों की आधार रूप अवधि का एक ही दिन शेष रह गया। यह सोचते ही भरतजी के मन में अपार दुःख हुआ। क्या कारण हुआ कि नाथ न

उत्तरकांड शुरुआत श्लोक

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श्रीगणेशायनमःश्रीजानकीवल्लभो विजयतेश्रीरामचरितमानससप्तम सोपानश्री उत्तरकाण्डश्लोक :केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नंशोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम्‌।पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्ध

लंका काण्ड दोहा 121

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चौपाई :प्रभु हनुमंतहि कहा बुझाई। धरि बटु रूप अवधपुर जाई॥भरतहि कुसल हमारि सुनाएहु। समाचार लै तुम्ह चलि आएहु॥1॥भावार्थ:-तदनन्तर प्रभु ने हनुमान्‌जी को समझाकर कहा- तुम ब्रह्मचारी का रूप धरकर अवधपुरी को जाओ। भरत को हमारी कुशल सुनान

लंका काण्ड दोहा 120

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चौपाई :तुरत बिमान तहाँ चलि आवा। दंडक बन जहँ परम सुहावा॥कुंभजादि मुनिनायक नाना। गए रामु सब कें अस्थाना॥1॥भावार्थ:-विमान शीघ्र ही वहाँ चला आया, जहाँ परम सुंदर दण्डकवन था और अगस्त्य आदि बहुत से मुनिराज रहते थे। श्री रामजी इन सबके स्थ

लंका काण्ड दोहा 119

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चौपाई :अतिसय प्रीति देखि रघुराई। लीन्हे सकल बिमान चढ़ाई॥मन महुँ बिप्र चरन सिरु नायो। उत्तर दिसिहि बिमान चलायो॥1॥भावार्थ:-श्री रघुनाथजी ने उनका अतिशय प्रेम देखकर सबको विमान पर चढ़ा लिया। तदनन्तर मन ही मन विप्रचरणों में सिर नवाक

लंका काण्ड दोहा 118

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चौपाई :भालु कपिन्ह पट भूषन पाए। पहिरि पहिरि रघुपति पहिं आए॥नाना जिनस देखि सब कीसा। पुनि पुनि हँसत कोसलाधीसा॥1॥भावार्थ:-भालुओं और वानरों ने कपड़े-गहने पाए और उन्हें पहन-पहनकर वे श्री रघुनाथजी के पास आए। अनेकों जातियों के वानरों क

लंका काण्ड दोहा 117

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चौपाई :सुनत बिभीषन बचन राम के। हरषि गहे पद कृपाधाम के॥बानर भालु सकल हरषाने। गहि प्रभु पद गुन बिमल बखाने॥1॥भावार्थ:-श्री रामचंद्रजी के वचन सुनते ही विभीषणजी ने हर्षित होकर कृपा के धाम श्री रामजी के चरण पकड़ लिए। सभी वानर-भालू हर्षि

लंका काण्ड दोहा 116

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चौपाई :करि बिनती जब संभु सिधाए। तब प्रभु निकट बिभीषनु आए॥नाइ चरन सिरु कह मृदु बानी। बिनय सुनहु प्रभु सारँगपानी॥1॥भावार्थ:-जब शिवजी विनती करके चले गए, तब विभीषणजी प्रभु के पास आए और चरणों में सिर नवाकर कोमल वाणी से बोले- हे शार्गं धन