लंका काण्ड दोहा 57
Filed under:
Lanka Kand
चौपाई :अस कहि चला रचिसि मग माया। सर मंदिर बर बाग बनाया॥मारुतसुत देखा सुभ आश्रम। मुनिहि बूझि जल पियौं जाइ श्रम॥1॥ भावार्थ:- वह मन ही मन ऐसा कहकर चला और उसने मार्ग में माया रची। तालाब, मंदिर और सुंदर बाग बनाया। हनुमान्जी ने सुंदर