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लंका काण्ड दोहा 53

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चौपाई :छतज नयन उर बाहु बिसाला। हिमगिरि निभ तनु कछु एक लाला॥इहाँ दसानन सुभट पठाए। नाना अस्त्र सस्त्र गहि धाए॥1॥ भावार्थ:- उनके लाल नेत्र हैं, चौड़ी छाती और विशाल भुजाएँ हैं। हिमाचल पर्वत के समान उज्ज्वल (गौरवर्ण) शरीर कुछ ललाई लि

लंका काण्ड दोहा 52

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चौपाई : :नभ चढ़ि बरष बिपुल अंगारा। महि ते प्रगट होहिं जलधारा॥नाना भाँति पिसाच पिसाची। मारु काटु धुनि बोलहिं नाची॥1॥ भावार्थ:- आकाश में (ऊँचे) चढ़कर वह बहुत से अंगारे बरसाने लगा। पृथ्वी से जल की धाराएँ प्रकट होने लगीं। अनेक प्रका

लंका काण्ड दोहा 51

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चौपाई :देखि पवनसुत कटक बिहाला। क्रोधवंत जनु धायउ काला॥महासैल एक तुरत उपारा। अति रिस मेघनाद पर डारा॥1॥ भावार्थ:- सारी सेना को बेहाल (व्याकुल) देखकर पवनसुत हनुमान्‌ क्रोध करके ऐसे दौड़े मानो स्वयं काल दौड़ आता हो। उन्होंने तुरं

लंका काण्ड दोहा 50

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चौपाई :कहँ कोसलाधीस द्वौ भ्राता। धन्वी सकल लोत बिख्याता॥कहँ नल नील दुबिद सुग्रीवा। अंगद हनूमंत बल सींवा॥1॥ भावार्थ:- (मेघनाद ने पुकारकर कहा-) समस्त लोकों में प्रसिद्ध धनुर्धर कोसलाधीश दोनों भाई कहाँ हैं? नल, नील, द्विविद, सुग्रीव

लंका काण्ड दोहा 49

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चौपाई :परिहरि बयरु देहु बैदेही। भजहु कृपानिधि परम सनेही॥ताके बचन बान सम लागे। करिआ मुँह करि जाहि अभागे॥1॥ भावार्थ:- (अतः) वैर छोड़कर उन्हें जानकीजी को दे दो और कृपानिधान परम स्नेही श्री रामजी का भजन करो। रावण को उसके वचन बाण के 

लंका काण्ड दोहा 48

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चौपाई :निसा जानि कपि चारिउ अनी। आए जहाँ कोसला धनी॥राम कृपा करि चितवा सबही। भए बिगतश्रम बानर तबही॥1॥ भावार्थ:- रात हुई जानकर वानरों की चारों सेनाएँ (टुकड़ियाँ) वहाँ आईं, जहाँ कोसलपति श्री रामजी थे। श्री रामजी ने ज्यों ही सबको कृप

लंका काण्ड दोहा 47

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चौपाई :सकल मरमु रघुनायक जाना। लिए बोलि अंगद हनुमाना॥समाचार सब कहि समुझाए। सुनत कोपि कपिकुंजर धाए॥1॥ भावार्थ:- श्री रघुनाथजी सब रहस्य जान गए। उन्होंने अंगद और हनुमान्‌ को बुला लिया और सब समाचार कहकर समझाया। सुनते ही वे दोनों क

लंका काण्ड दोहा 46

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चौपाई :प्रभु पद कमल सीस तिन्ह नाए। देखि सुभट रघुपति मन भाए॥राम कृपा करि जुगल निहारे। भए बिगतश्रम परम सुखारे॥1॥ भावार्थ:- उन्होंने प्रभु के चरण कमलों में सिर नवाए। उत्तम योद्धाओं को देखकर श्री रघुनाथजी मन में बहुत प्रसन्न हुए।