लंका काण्ड दोहा 49
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चौपाई :परिहरि बयरु देहु बैदेही। भजहु कृपानिधि परम सनेही॥ताके बचन बान सम लागे। करिआ मुँह करि जाहि अभागे॥1॥ भावार्थ:- (अतः) वैर छोड़कर उन्हें जानकीजी को दे दो और कृपानिधान परम स्नेही श्री रामजी का भजन करो। रावण को उसके वचन बाण के