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लंका काण्ड दोहा 49

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चौपाई :परिहरि बयरु देहु बैदेही। भजहु कृपानिधि परम सनेही॥ताके बचन बान सम लागे। करिआ मुँह करि जाहि अभागे॥1॥ भावार्थ:- (अतः) वैर छोड़कर उन्हें जानकीजी को दे दो और कृपानिधान परम स्नेही श्री रामजी का भजन करो। रावण को उसके वचन बाण के 

लंका काण्ड दोहा 48

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चौपाई :निसा जानि कपि चारिउ अनी। आए जहाँ कोसला धनी॥राम कृपा करि चितवा सबही। भए बिगतश्रम बानर तबही॥1॥ भावार्थ:- रात हुई जानकर वानरों की चारों सेनाएँ (टुकड़ियाँ) वहाँ आईं, जहाँ कोसलपति श्री रामजी थे। श्री रामजी ने ज्यों ही सबको कृप

लंका काण्ड दोहा 47

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चौपाई :सकल मरमु रघुनायक जाना। लिए बोलि अंगद हनुमाना॥समाचार सब कहि समुझाए। सुनत कोपि कपिकुंजर धाए॥1॥ भावार्थ:- श्री रघुनाथजी सब रहस्य जान गए। उन्होंने अंगद और हनुमान्‌ को बुला लिया और सब समाचार कहकर समझाया। सुनते ही वे दोनों क

लंका काण्ड दोहा 46

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चौपाई :प्रभु पद कमल सीस तिन्ह नाए। देखि सुभट रघुपति मन भाए॥राम कृपा करि जुगल निहारे। भए बिगतश्रम परम सुखारे॥1॥ भावार्थ:- उन्होंने प्रभु के चरण कमलों में सिर नवाए। उत्तम योद्धाओं को देखकर श्री रघुनाथजी मन में बहुत प्रसन्न हुए। 

लंका काण्ड दोहा 45

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चौपाई :महा महा मुखिआ जे पावहिं। ते पद गहि प्रभु पास चलावहिं॥कहइ बिभीषनु तिन्ह के नामा। देहिं राम तिन्हहू निज धामा॥1॥ भावार्थ:- जिन बड़े-बड़े मुखियों (प्रधान सेनापतियों) को पकड़ पाते हैं, उनके पैर पकड़कर उन्हें प्रभु के पास फेंक 

लंका काण्ड दोहा 44

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चौपाई :जुद्ध बिरुद्ध क्रुद्ध द्वौ बंदर। राम प्रताप सुमिरि उर अंतर॥रावन भवन चढ़े द्वौ धाई। करहिं कोसलाधीस दोहाई॥1॥ भावार्थ:- युद्ध में शत्रुओं के विरुद्ध दोनों वानर क्रुद्ध हो गए। हृदय में श्री रामजी के प्रताप का स्मरण करके द

लंका काण्ड दोहा 43

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चौपाई :भय आतुर कपि भागत लागे। जद्यपि उमा जीतिहहिं आगे॥कोउ कह कहँ अंगद हनुमंता। कहँ नल नील दुबिद बलवंता॥1॥ भावार्थ:- (शिवजी कहते हैं-) वानर भयातुर होकर (डर के मारे घबड़ाकर) भागने लगे, यद्यपि हे उमा! आगे चलकर (वे ही) जीतेंगे। कोई कहता 

लंका काण्ड दोहा 42

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चौपाई :राम प्रताप प्रबल कपिजूथा। मर्दहिं निसिचर सुभट बरूथा॥चढ़े दुर्ग पुनि जहँ तहँ बानर। जय रघुबीर प्रताप दिवाकर॥1॥ भावार्थ:- श्री रामजी के प्रताप से प्रबल वानरों के झुंड राक्षस योद्धाओं के समूह के समूह मसल रहे हैं। वानर फिर