अयोध्याकाण्ड दोहा 318
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चौपाई :जहाँ जनक गुरु गति मति भोरी। प्राकृत प्रीति कहत बड़ि खोरी॥बरनत रघुबर भरत बियोगू। सुनि कठोर कबि जानिहि लोगू॥1॥ भावार्थ:- जहाँ जनकजी और गुरु वशिष्ठजी की बुद्धि की गति कुण्ठित हो, उस दिव्य प्रेम को प्राकृत (लौकिक) कहने में बड़ा द