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किष्किंधाकांड दोहा 24

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चौपाई :कतहुँ होइ निसिचर सैं भेटा। प्रान लेहिं एक एक चपेटा॥बहु प्रकार गिरि कानन हेरहिं। कोउ मुनि मिलइ ताहि सब घेरहिं॥1॥ भावार्थ:- कहीं किसी राक्षस से भेंट हो जाती है, तो एक-एक चपत में ही उसके प्राण ले लेते हैं। पर्वतों और वनों को बह

किष्किंधाकांड दोहा 23

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चौपाई :सुनहु नील अंगद हनुमाना। जामवंत मतिधीर सुजाना॥सकल सुभट मिलि दच्छिन जाहू। सीता सुधि पूँछेहु सब काहू॥1॥ भावार्थ:- हे धीरबुद्धि और चतुर नील, अंगद, जाम्बवान्‌ और हनुमान! तुम सब श्रेष्ठ योद्धा मिलकर दक्षिण दिशा को जाओ और सब किस

किष्किंधाकांड दोहा 22

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चौपाई :बानर कटक उमा मैं देखा। सो मूरुख जो करन चह लेखा॥आइ राम पद नावहिं माथा। निरखि बदनु सब होहिं सनाथा॥1॥ भावार्थ:- (शिवजी कहते हैं-) हे उमा! वानरों की वह सेना मैंने देखी थी। उसकी जो गिनती करना चाहे वह महान्‌ मूर्ख है। सब वानर आ-आकर श्

किष्किंधाकांड दोहा 21

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चौपाई :नाइ चरन सिरु कह कर जोरी॥ नाथ मोहि कछु नाहिन खोरी॥अतिसय प्रबल देव तव माया॥ छूटइ राम करहु जौं दाया॥1॥ भावार्थ:- श्री रघुनाथजी के चरणों में सिर नवाकर हाथ जोड़कर सुग्रीव ने कहा- हे नाथ! मुझे कुछ भी दोष नहीं है। हे देव! आपकी माया अ

किष्किंधाकांड दोहा 20

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चौपाई :चर नाइ सिरु बिनती कीन्ही। लछिमन अभय बाँह तेहि दीन्ही॥क्रोधवंत लछिमन सुनि काना। कह कपीस अति भयँ अकुलाना॥1॥ भावार्थ:- अंगद ने उनके चरणों में सिर नवाकर विनती की (क्षमा-याचना की) तब लक्ष्मणजी ने उनको अभय बाँह दी (भुजा उठाकर कहा 

किष्किंधाकांड दोहा 19

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चौपाई :इहाँ पवनसुत हृदयँ बिचारा। राम काजु सुग्रीवँ बिसारा॥निकट जाइ चरनन्हि सिरु नावा। चारिहु बिधि तेहि कहि समुझावा॥1॥ भावार्थ:- यहाँ (किष्किन्धा नगरी में) पवनकुमार श्री हनुमान्‌जी ने विचार किया कि सुग्रीव ने श्री रामजी के कार

किष्किंधाकांड दोहा 18

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चौपाई :बरषा गत निर्मल रितु आई। सुधि न तात सीता कै पाई॥एक बार कैसेहुँ सुधि जानौं। कालुह जीति निमिष महुँ आनौं॥1॥ भावार्थ:- वर्षा बीत गई, निर्मल शरद्ऋतु आ गई, परंतु हे तात! सीता की कोई खबर नहीं मिली। एक बार कैसे भी पता पाऊँ तो काल को भी ज

किष्किंधाकांड दोहा 17

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चौपाई :सुखी मीन जे नीर अगाधा। जिमि हरि सरन न एकऊ बाधा॥फूलें कमल सोह सर कैसा। निर्गुन ब्रह्म सगुन भएँ जैसा॥1॥ भावार्थ:- जो मछलियाँ अथाह जल में हैं, वे सुखी हैं, जैसे श्री हरि के शरण में चले जाने पर एक भी बाधा नहीं रहती। कमलों के फूलने