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लंका काण्ड दोहा 1

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चौपाई :यह लघु जलधि तरत कति बारा। अस सुनि पुनि कह पवनकुमारा॥प्रभु प्रताप बड़वानल भारी। सोषेउ प्रथम पयोनिधि बारी॥1॥ भावार्थ:- फिर यह छोटा सा समुद्र पार करने में कितनी देर लगेगी? ऐसा सुनकर फिर पवनकुमार श्री हनुमान्‌जी ने कहा- प्र

लंका काण्ड श्लोक

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श्लोक :रामं कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेभसिंहंयोगीन्द्रं ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजितं निर्गुणं निर्विकारम्‌।मायातीतं सुरेशं खलवधनिरतं ब्रह्मवृन्दैकदेवंवन्दे कन्दावदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरूपम्‌॥1॥ भावार्थ:- कामदे

किष्किंधाकांड दोहा 30

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चौपाई :अंगद कहइ जाउँ मैं पारा। जियँ संसय कछु फिरती बारा॥जामवंत कह तुम्ह सब लायक। पठइअ किमि सबही कर नायक॥1॥ भावार्थ:- अंगद ने कहा- मैं पार तो चला जाऊँगा, परंतु लौटते समय के लिए हृदय में कुछ संदेह है। जाम्बवान्‌ ने कहा- तुम सब प्रकार स

किष्किंधाकांड दोहा 29

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चौपाई :जो नाघइ सत जोजन सागर। करइ सो राम काज मति आगर॥मोहि बिलोकि धरहु मन धीरा। राम कृपाँ कस भयउ सरीरा॥1॥ भावार्थ:- जो सौ योजन (चार सौ कोस) समुद्र लाँघ सकेगा और बुद्धिनिधान होगा, वही श्री रामजी का कार्य कर सकेगा। (निराश होकर घबराओ मत) म

किष्किंधाकांड दोहा 28

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चौपाई :अनुज क्रिया करि सागर तीरा। कहि निज कथा सुनहु कपि बीरा॥हम द्वौ बंधु प्रथम तरुनाई। गगन गए रबि निकट उड़ाई॥1॥ भावार्थ:- समुद्र के तीर पर छोटे भाई जटायु की क्रिया (श्राद्ध आदि) करके सम्पाती अपनी कथा कहने लगा- हे वीर वानरों! सुनो, ह

किष्किंधाकांड दोहा 27

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चौपाई :एहि बिधि कथा कहहिं बहु भाँती। गिरि कंदराँ सुनी संपाती॥बाहेर होइ देखि बहु कीसा। मोहि अहार दीन्ह जगदीसा॥1॥ भावार्थ:- इस प्रकार जाम्बवान्‌ बहुत प्रकार से कथाएँ कह रहे हैं। इनकी बातें पर्वत की कन्दरा में सम्पाती ने सुनीं। बा

किष्किंधाकांड दोहा 26

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चौपाई :इहाँ बिचारहिं कपि मन माहीं। बीती अवधि काज कछु नाहीं॥सब मिलि कहहिं परस्पर बाता। बिनु सुधि लएँ करब का भ्राता॥1॥ भावार्थ:- यहाँ वानरगण मन में विचार कर रहे हैं कि अवधि तो बीत गई, पर काम कुछ न हुआ। सब मिलकर आपस में बात करने लगे कि 

किष्किंधाकांड दोहा 25

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चौपाई :दूरि ते ताहि सबन्हि सिरु नावा। पूछें निज बृत्तांत सुनावा॥तेहिं तब कहा करहु जल पाना। खाहु सुरस सुंदर फल नाना॥1॥ भावार्थ:- दूर से ही सबने उसे सिर नवाया और पूछने पर अपना सब वृत्तांत कह सुनाया। तब उसने कहा- जलपान करो और भाँति-भा