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लंका काण्ड दोहा 17

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चौपाई :इहाँ प्रात जागे रघुराई। पूछा मत सब सचिव बोलाई॥कहहु बेगि का करिअ उपाई। जामवंत कह पद सिरु नाई॥1॥ भावार्थ:- यहाँ (सुबेल पर्वत पर) प्रातःकाल श्री रघुनाथजी जागे और उन्होंने सब मंत्रियों को बुलाकर सलाह पूछी कि शीघ्र बताइए, अब क

लंका काण्ड दोहा 16

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चौपाई :बिहँसा नारि बचन सुनि काना। अहो मोह महिमा बलवाना॥नारि सुभाउ सत्य सब कहहीं। अवगुन आठ सदा उर रहहीं॥1॥ भावार्थ:- पत्नी के वचन कानों से सुनकर रावण खूब हँसा (और बोला-) अहो! मोह (अज्ञान) की महिमा बड़ी बलवान्‌ है। स्त्री का स्वभाव स

लंका काण्ड दोहा 15

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चौपाई :पद पाताल सीस अज धामा। अपर लोक अँग अँग बिश्रामा॥भृकुटि बिलास भयंकर काला। नयन दिवाकर कच घन माला॥1॥ भावार्थ:- पाताल (जिन विश्व रूप भगवान्‌ का) चरण है, ब्रह्म लोक सिर है, अन्य (बीच के सब) लोकों का विश्राम (स्थिति) जिनके अन्य भिन्

लंका काण्ड दोहा 14

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चौपाई :कंप न भूमि न मरुत बिसेषा। अस्त्र सस्त्र कछु नयन न देखा।सोचहिं सब निज हृदय मझारी। असगुन भयउ भयंकर भारी॥1॥ भावार्थ:- न भूकम्प हुआ, न बहुत जोर की हवा (आँधी) चली। न कोई अस्त्र-शस्त्र ही नेत्रों से देखे। (फिर ये छत्र, मुकुट और कर्

लंका काण्ड दोहा 13

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चौपाई :देखु विभीषन दच्छिन आसा। घन घमंड दामिनी बिलासा॥मधुर मधुर गरजइ घन घोरा। होइ बृष्टि जनि उपल कठोरा॥1॥ भावार्थ:- हे विभीषण! दक्षिण दिशा की ओर देखो, बादल कैसा घुमड़ रहा है और बिजली चमक रही है। भयानक बादल मीठे-मीठे (हल्के-हल्के) स

लंका काण्ड दोहा 12

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चौपाई :पूरब दिसि गिरिगुहा निवासी। परम प्रताप तेज बल रासी॥मत्त नाग तम कुंभ बिदारी। ससि केसरी गगन बन चारी॥1॥ भावार्थ:- पूर्व दिशा रूपी पर्वत की गुफा में रहने वाला, अत्यंत प्रताप, तेज और बल की राशि यह चंद्रमा रूपी सिंह अंधकार रूपी 

लंका काण्ड दोहा 11

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चौपाई :इहाँ सुबेल सैल रघुबीरा। उतरे सेन सहित अति भीरा॥सिखर एक उतंग अति देखी। परम रम्य सम सुभ्र बिसेषी॥1॥ भावार्थ:- यहाँ श्री रघुवीर सुबेल पर्वत पर सेना की बड़ी भीड़ (बड़े समूह) के साथ उतरे। पर्वत का एक बहुत ऊँचा, परम रमणीय, समतल औ

लंका काण्ड दोहा 10

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चौपाई :यह मत जौं मानहु प्रभु मोरा। उभय प्रकार सुजसु जग तोरा॥सुत सन कह दसकंठ रिसाई। असि मति सठ केहिं तोहि सिखाई॥1॥ भावार्थ:- हे प्रभो! यदि आप मेरी यह सम्मति मानेंगे, तो जगत्‌ में दोनों ही प्रकार से आपका सुयश होगा। रावण ने गुस्से मे