लंका काण्ड दोहा 9
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चौपाई :कहहिं सचिव सठ ठकुर सोहाती। नाथ न पूर आव एहि भाँती॥बारिधि नाघि एक कपि आवा। तासु चरित मन महुँ सबु गावा॥॥1॥ भावार्थ:- ये सभी मूर्ख (खुशामदी) मन्त्र ठकुरसुहाती (मुँहदेखी) कह रहे हैं। हे नाथ! इस प्रकार की बातों से पूरा नहीं पड़े