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लंका काण्ड दोहा 25

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चौपाई : :सुनु सठ सोइ रावन बलसीला। हरगिरि जान जासु भुज लीला॥जान उमापति जासु सुराई। पूजेउँ जेहि सिर सुमन चढ़ाई॥1॥ भावार्थ:-(रावण ने कहा-) अरे मूर्ख! सुन, मैं वही बलवान्‌ रावण हूँ, जिसकी भुजाओं की लीला (करामात) कैलास पर्वत जानता है। जिस

लंका काण्ड दोहा 24

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चौपाई :धन्य कीस जो निज प्रभु काजा। जहँ तहँ नाचइ परिहरि लाजा॥नाचि कूदि करि लोग रिझाई। पति हित करइ धर्म निपुनाई॥1॥ भावार्थ:- बंदर को धन्य है, जो अपने मालिक के लिए लाज छोड़कर जहाँ-तहाँ नाचता है। नाच-कूदकर, लोगों को रिझाकर, मालिक का ह

लंका काण्ड दोहा 23

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चौपाई :तुम्हरे कटक माझ सुनु अंगद। मो सन भिरिहि कवन जोधा बद॥तब प्रभु नारि बिरहँ बलहीना। अनुज तासु दुख दुखी मलीना॥1॥ भावार्थ:- अरे अंगद! सुन, तेरी सेना में बता, ऐसा कौन योद्धा है, जो मुझसे भिड़ सकेगा। तेरा मालिक तो स्त्री के वियोग म

लंका काण्ड दोहा 22

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चौपाई :सिव बिरंचि सुर मुनि समुदाई। चाहत जासु चरन सेवकाई॥तासु दूत होइ हम कुल बोरा। अइसिहुँ मति उर बिहर न तोरा॥1॥ भावार्थ:- शिव, ब्रह्मा (आदि) देवता और मुनियों के समुदाय जिनके चरणों की सेवा (करना) चाहते हैं, उनका दूत होकर मैंने कुल क

लंका काण्ड दोहा 21

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चौपाई :रे कपिपोत बोलु संभारी। मूढ़ न जानेहि मोहि सुरारी॥कहु निज नाम जनक कर भाई। केहि नातें मानिऐ मिताई॥1॥ भावार्थ:- (रावण ने कहा-) अरे बंदर के बच्चे! सँभालकर बोल! मूर्ख! मुझ देवताओं के शत्रु को तूने जाना नहीं? अरे भाई! अपना और अपने ब

लंका काण्ड दोहा 20

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चौपाई :कह दसकंठ कवन तैं बंदर। मैं रघुबीर दूत दसकंधर॥मम जनकहि तोहि रही मिताई। तव हित कारन आयउँ भाई॥1॥ भावार्थ:- रावण ने कहा- अरे बंदर! तू कौन है? (अंगद ने कहा-) हे दशग्रीव! मैं श्री रघुवीर का दूत हूँ। मेरे पिता से और तुमसे मित्रता थी, इ

लंका काण्ड दोहा 19

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चौपाई :तुरत निसाचर एक पठावा। समाचार रावनहि जनावा॥सुनत बिहँसि बोला दससीसा। आनहु बोलि कहाँ कर कीसा॥1॥ भावार्थ:- तुरंत ही उन्होंने एक राक्षस को भेजा और रावण को अपने आने का समाचार सूचित किया। सुनते ही रावण हँसकर बोला- बुला लाओ, (देख

लंका काण्ड दोहा 18

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चौपाई :बंदि चरन उर धरि प्रभुताई। अंगद चलेउ सबहि सिरु नाई॥प्रभु प्रताप उर सहज असंका। रन बाँकुरा बालिसुत बंका॥1॥ भावार्थ:- चरणों की वंदना करके और भगवान्‌ की प्रभुता हृदय में धरकर अंगद सबको सिर नवाकर चले। प्रभु के प्रताप को हृदय