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लंका काण्ड दोहा 45

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चौपाई :महा महा मुखिआ जे पावहिं। ते पद गहि प्रभु पास चलावहिं॥कहइ बिभीषनु तिन्ह के नामा। देहिं राम तिन्हहू निज धामा॥1॥ भावार्थ:- जिन बड़े-बड़े मुखियों (प्रधान सेनापतियों) को पकड़ पाते हैं, उनके पैर पकड़कर उन्हें प्रभु के पास फेंक 

लंका काण्ड दोहा 44

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चौपाई :जुद्ध बिरुद्ध क्रुद्ध द्वौ बंदर। राम प्रताप सुमिरि उर अंतर॥रावन भवन चढ़े द्वौ धाई। करहिं कोसलाधीस दोहाई॥1॥ भावार्थ:- युद्ध में शत्रुओं के विरुद्ध दोनों वानर क्रुद्ध हो गए। हृदय में श्री रामजी के प्रताप का स्मरण करके द

लंका काण्ड दोहा 43

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चौपाई :भय आतुर कपि भागत लागे। जद्यपि उमा जीतिहहिं आगे॥कोउ कह कहँ अंगद हनुमंता। कहँ नल नील दुबिद बलवंता॥1॥ भावार्थ:- (शिवजी कहते हैं-) वानर भयातुर होकर (डर के मारे घबड़ाकर) भागने लगे, यद्यपि हे उमा! आगे चलकर (वे ही) जीतेंगे। कोई कहता 

लंका काण्ड दोहा 42

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चौपाई :राम प्रताप प्रबल कपिजूथा। मर्दहिं निसिचर सुभट बरूथा॥चढ़े दुर्ग पुनि जहँ तहँ बानर। जय रघुबीर प्रताप दिवाकर॥1॥ भावार्थ:- श्री रामजी के प्रताप से प्रबल वानरों के झुंड राक्षस योद्धाओं के समूह के समूह मसल रहे हैं। वानर फिर 

लंका काण्ड दोहा 41

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चौपाई :कोट कँगूरन्हि सोहहिं कैसे। मेरु के सृंगनि जनु घन बैसे॥बाजहिं ढोल निसान जुझाऊ। सुनि धुनि होइ भटन्हि मन चाऊ॥1॥ भावार्थ:- वे परकोटे के कँगूरों पर कैसे शोभित हो रहे हैं, मानो सुमेरु के शिखरों पर बादल बैठे हों। जुझाऊ ढोल और डंक

लंका काण्ड दोहा 40

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चौपाई :लंकाँ भयउ कोलाहल भारी। सुना दसानन अति अहँकारी॥देखहु बनरन्ह केरि ढिठाई। बिहँसि निसाचर सेन बोलाई॥1॥ भावार्थ:- लंका में बड़ा भारी कोलाहल (कोहराम) मच गया। अत्यंत अहंकारी रावण ने उसे सुनकर कहा- वानरों की ढिठाई तो देखो! यह कहत

लंका काण्ड दोहा 39

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चौपाई :रिपु के समाचार जब पाए। राम सचिव सब निकट बोलाए॥लंका बाँके चारि दुआरा। केहि बिधि लागिअ करहु बिचारा॥1॥ भावार्थ:- जब शत्रु के समाचार प्राप्त हो गए, तब श्री रामचंद्रजी ने सब मंत्रियों को पास बुलाया (और कहा-) लंका के चार बड़े विक

लंका काण्ड दोहा 38

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चौपाई :नारि बचन सुनि बिसिख समाना। सभाँ गयउ उठि होत बिहाना॥बैठ जाइ सिंघासन फूली। अति अभिमान त्रास सब भूली॥1॥ भावार्थ:- स्त्री के बाण के समान वचन सुनकर वह सबेरा होते ही उठकर सभा में चला गया और सारा भय भुलाकर अत्यंत अभिमान में फूलक