लंका काण्ड दोहा 45
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चौपाई :महा महा मुखिआ जे पावहिं। ते पद गहि प्रभु पास चलावहिं॥कहइ बिभीषनु तिन्ह के नामा। देहिं राम तिन्हहू निज धामा॥1॥ भावार्थ:- जिन बड़े-बड़े मुखियों (प्रधान सेनापतियों) को पकड़ पाते हैं, उनके पैर पकड़कर उन्हें प्रभु के पास फेंक