Home / Articles / Balkand / बालकांड दोहा 351

बालकांड दोहा 351


चौपाई :

देव पितर पूजे बिधि नीकी। पूजीं सकल बासना जी की॥
सबहि बंदि माँगहिं बरदाना। भाइन्ह सहित राम कल्याना॥1॥

 

भावार्थ:- मन की सभी वासनाएँ पूरी हुई जानकर देवता और पितरों का भलीभाँति पूजन किया। सबकी वंदना करके माताएँ यही वरदान माँगती हैं कि भाइयों सहित श्री रामजी का कल्याण हो॥1॥

 

अंतरहित सुर आसिष देहीं। मुदित मातु अंचल भरि लेहीं॥
भूपति बोलि बराती लीन्हे। जान बसन मनि भूषन दीन्हे॥2॥

 

भावार्थ:- देवता छिपे हुए (अन्तरिक्ष से) आशीर्वाद दे रहे हैं और माताएँ आनन्दित हो आँचल भरकर ले रही हैं। तदनन्तर राजा ने बारातियों को बुलवा लिया और उन्हें सवारियाँ, वस्त्र, मणि (रत्न) और आभूषणादि दिए॥2॥

 

आयसु पाइ राखि उर रामहि। मुदित गए सब निज निज धामहि॥
पुर नर नारि सकल पहिराए। घर घर बाजन लगे बधाए॥3॥

 

भावार्थ:- आज्ञा पाकर, श्री रामजी को हृदय में रखकर वे सब आनंदित होकर अपने-अपने घर गए। नगर के समस्त स्त्री-पुरुषों को राजा ने कपड़े और गहने पहनाए। घर-घर बधावे बजने लगे॥3॥

 

जाचक जन जाचहिं जोइ जोई। प्रमुदित राउ देहिं सोइ सोई॥
सेवक सकल बजनिआ नाना। पूरन किए दान सनमाना॥4॥

 

भावार्थ:- याचक लोग जो-जो माँगते हैं, विशेष प्रसन्न होकर राजा उन्हें वही-वही देते हैं। सम्पूर्ण सेवकों और बाजे वालों को राजा ने नाना प्रकार के दान और सम्मान से सन्तुष्ट किया॥4॥

 

दोहा :

देहिं असीस जोहारि सब गावहिं गुन गन गाथ।
तब गुर भूसुर सहित गृहँ गवनु कीन्ह नरनाथ॥351॥

 

भावार्थ:- सब जोहार (वंदन) करके आशीष देते हैं और गुण समूहों की कथा गाते हैं। तब गुरु और ब्राह्मणों सहित राजा दशरथजी ने महल में गमन किया॥351॥

This article is filed under: Balkand

Next Articles

(1) बालकांड दोहा 352
(2) बालकांड दोहा 353
(3) बालकांड दोहा 354
(4) बालकांड दोहा 355
(5) बालकांड दोहा 356

Comments

Login or register to add Comments.

No comment yet. Be the first to comment on this article.