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बालकांड दोहा 355


चौपाई :

मंगलगान करहिं बर भामिनि। भै सुखमूल मनोहर जामिनि॥
अँचइ पान सब काहूँ पाए। स्रग सुगंध भूषित छबि छाए॥1॥

 

भावार्थ:- सुंदर स्त्रियाँ मंगलगान कर रही हैं। वह रात्रि सुख की मूल और मनोहारिणी हो गई। सबने आचमन करके पान खाए और फूलों की माला, सुगंधित द्रव्य आदि से विभूषित होकर सब शोभा से छा गए॥1॥

 

रामहि देखि रजायसु पाई। निज निज भवन चले सिर नाई॥
प्रेम प्रमोदु बिनोदु बड़ाई। समउ समाजु मनोहरताई॥2॥

 

भावार्थ:- श्री रामचन्द्रजी को देखकर और आज्ञा पाकर सब सिर नवाकर अपने-अपने घर को चले। वहाँ के प्रेम, आनंद, विनोद, महत्व, समय, समाज और मनोहरता को-॥2॥

 

कहि न सकहिं सतसारद सेसू। बेद बिरंचि महेस गनेसू॥
सो मैं कहौं कवन बिधि बरनी। भूमिनागु सिर धरइ कि धरनी॥3॥

 

भावार्थ:- सैकड़ों सरस्वती, शेष, वेद, ब्रह्मा, महादेवजी और गणेशजी भी नहीं कह सकते। फिर भला मैं उसे किस प्रकार से बखानकर कहूँ? कहीं केंचुआ भी धरती को सिर पर ले सकता है?॥3॥

 

नृप सब भाँति सबहि सनमानी। कहि मृदु बचन बोलाईं रानी॥
बधू लरिकनीं पर घर आईं। राखेहु नयन पलक की नाई॥4॥

 

भावार्थ:- राजा ने सबका सब प्रकार से सम्मान करके, कोमल वचन कहकर रानियों को बुलाया और कहा- बहुएँ अभी बच्ची हैं, पराए घर आई हैं। इनको इस तरह से रखना जैसे नेत्रों को पलकें रखती हैं (जैसे पलकें नेत्रों की सब प्रकार से रक्षा करती हैं और उन्हें सुख पहुँचाती हैं, वैसे ही इनको सुख पहुँचाना)॥4॥

 

दोहा :

लरिका श्रमित उनीद बस सयन करावहु जाइ।
अस कहि गे बिश्रामगृहँ राम चरन चितु लाइ॥355॥

 

भावार्थ:- लड़के थके हुए नींद के वश हो रहे हैं, इन्हें ले जाकर शयन कराओ। ऐसा कहकर राजा श्री रामचन्द्रजी के चरणों में मन लगाकर विश्राम भवन में चले गए॥355॥

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Comments

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Comments (1)

Shyam Dubey on 25-Dec-23 , 01:07:23
Jay siya ram