उत्तर काण्ड दोहा 07
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चौपाई :सासुन्ह सबनि मिली बैदेही । चरनन्हि लाग हरषु अति तेही॥देहिं असीस बूझि कुसलाता। होइ अचल तुम्हार अहिवाता॥1॥ भावार्थ:- जानकीजी सब सासुओं से मिलीं और उनके चरणों में लगकर उन्हें अत्यंत हर्ष हुआ। सासुएँ कुशल पूछकर आशीष दे रही ह