बालकांड दोहा 33
चौपाई :
कीन्हि प्रस्न जेहि भाँति भवानी। जेहि बिधि संकर कहा बखानी॥
सो सब हेतु कहब मैं गाई। कथा प्रबंध बिचित्र बनाई॥1॥भावार्थ:- जिस प्रकार श्री पार्वतीजी ने श्री शिवजी से प्रश्न किया और जिस प्रकार से श्री शिवजी ने विस्तार से उसका उत्तर कहा, वह सब कारण मैं विचित्र कथा की रचना करके गाकर कहूँगा॥1॥
जेहिं यह कथा सुनी नहिं होई। जनि आचरजु करै सुनि सोई॥
कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी। नहिं आचरजु करहिं अस जानी॥2॥
रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं॥
नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा॥3॥भावार्थ:- जिसने यह कथा पहले न सुनी हो, वह इसे सुनकर आश्चर्य न करे। जो ज्ञानी इस विचित्र कथा को सुनते हैं, वे यह जानकर आश्चर्य नहीं करते कि संसार में रामकथा की कोई सीमा नहीं है (रामकथा अनंत है)। उनके मन में ऐसा विश्वास रहता है। नाना प्रकार से श्री रामचन्द्रजी के अवतार हुए हैं और सौ करोड़ तथा अपार रामायण हैं॥2-3॥
कलपभेद हरिचरित सुहाए। भाँति अनेक मुनीसन्ह गाए॥
करिअ न संसय अस उर आनी। सुनिअ कथा सादर रति मानी॥4॥भावार्थ:- कल्पभेद के अनुसार श्री हरि के सुंदर चरित्रों को मुनीश्वरों ने अनेकों प्रकार से गया है। हृदय में ऐसा विचार कर संदेह न कीजिए और आदर सहित प्रेम से इस कथा को सुनिए॥4॥
दोहा :
राम अनंत अनंत गुन अमित कथा बिस्तार।
सुनि आचरजु न मानिहहिं जिन्ह कें बिमल बिचार॥33॥भावार्थ:- श्री रामचन्द्रजी अनन्त हैं, उनके गुण भी अनन्त हैं और उनकी कथाओं का विस्तार भी असीम है। अतएव जिनके विचार निर्मल हैं, वे इस कथा को सुनकर आश्चर्य नहीं मानेंगे॥33॥
Login or register to add Comments.