Mantra: ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
त्रयंबकम- त्रि.नेत्रों वाला ;कर्मकारक। यजामहे- हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं। हमारे श्रद्देय। सुगंधिम- मीठी महक वाला, सुगंधित। पुष्टि- एक सुपोषित स्थिति, फलने वाला व्यक्ति। जीवन की परिपूर्णता वर्धनम- वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है। उर्वारुक- ककड़ी। इवत्र- जैसे, इस तरह। बंधनात्र- वास्तव में समाप्ति से अधिक लंबी है। मृत्यु- मृत्यु से मुक्षिया, हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें। मात्र न अमृतात- अमरता, मोक्ष।
भय से छुटकारा पाने के लिए 1100 मंत्र का जप किया जाता है। रोगों से मुक्ति के लिए 11000 मंत्रों का जप किया जाता है। पुत्र की प्राप्ति के लिए, उन्नति के लिए, अकाल मृत्यु से बचने के लिए सवा लाख की संख्या में मंत्र जप करना अनिवार्य है। यदि साधक पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यह साधना करें, तो वांछित फल की प्राप्ति की प्रबल संभावना रहती है। रोज रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करने से अकाल मृत्यु (असमय मौत) का डर दूर होता है। साथ ही कुंडली के दूसरे बुरे रोग भी शांत होते हैं, इसके अलावा पांच तरह के सुख भी इस मंत्र के जाप से मिलते हैं।
ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्
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